दो ध्रुवोंवाला जनतंत्र
सुनते नहीं हम किसी की
करते हैं सिर्फ़ अपनी बात.
निर्द्वंद्व, एकतरफ़ा
सिर्फ़ और सिर्फ़ हमने देखा है
सच का वह लहराता सागर
बताना है जिसका रूपाकार
सब को.
सब, जो बैठे हैं निपट अँधेरे में
बंदकर सारी खिड़कियाँ
काटकर सारे रास्ते
रोशनी और हवा के
कुछ नहीं जानते वो
सिवा मक्कार झूठ के.
संवाद और विवाद और विनिमय और बहस में नहीं पड़ते हम.
निरर्थक है बहस, निरर्थक है विचार-विनिमय
निरर्थक है आदान-प्रदान
कुछ नहीं बचा हमें जानने-देखने को
जान लिया गया है सब कुछ
सारा सत्य
अंतिम रूप से
हमारे द्वारा.
और कुछ नहीं है उनके पास
बताने को हमें
ऊपर से खोट है नीयत में उनकी.
भूल गए हैं हम तर्क, भूल गए हैं विवेक
गुम हो गई है हमारी भाषा
रह गई हैं सिर्फ़ कटूक्तियाँ
आरोप और लांक्षन और अपशब्द.
हमारी त्रासदी ?
क्या रोएँ और किससे रोयें !
वे भी हैं ठीक हमारी तरह
कुछ नहीं सुनते, हमारी तरह
कहते हैं सिर्फ़ अपनी बात, हमारी तरह
एकतरफ़ा
जान लिया है उन्होंने भी
सारा सत्य अंतिम रूप से.
खोटी है नीयत हमारी भी उनके लेखे
भाषा नहीं है उनके पास भी
सिवा कटूक्तियों के, लांक्षन, आरोप और अपशब्द के.
दो ध्रुवोंवाले इस ‘जनतंत्र’ में.
हम हम रहेंगे,
वे वे रहेंगे
अपने-अपने ध्रुवों पर
अभिशप्त
रहने और लड़ने के लिए
हमेशा
…………………………
कमलाकांत त्रिपाठी की कलम से
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साहिल पटेल की रिपोर्ट