पारदर्शिता से परिपक्व होगा लोकतंत्र
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मनोज यादव पत्रकार
73 वे संविधान संशोधन के बाद पंचायतों को जो अधिकार मिले और जिन उद्देश्यो को पूरा करने का निर्धारण किया गया था अभी भी उसे अमली जामा पहनाना कोसो दूर की बात दिखाई दे रही है। ग्राम स्वराज की अवधारणा और आदर्श आज भी हकीकत में जनमानस की आकांक्षाओं और गांधीवादी परिकल्पना से परे ही नजर आते है।
आज भी भारी भरकम भ्रष्टाचार गांवों में हो जाता है और लोग या तो उससे अंजान रहते है या फिर जानबूझकर अंजान बने रहते है या फिर मोर्चा खोलते है तो हर जगह अधिकारियों की सांठ गांठ और उनके शेयर फिक्स रहते है लिहाजा आम आदमी छोटी सी कोशिश के बाद जिंदगी की जद्दोजहद में जुट जाता है।
जनभागीदारी के लिए सरकार ने गांव के कार्यो के लिए सोशल आडिट जैसी व्यवस्था को बढ़ावा दिया है, सूचना का अधिकार को कानूनी अधिकार बनाया गया है मगर लोगो के जेहन में कुछ कामो को ढककर करने की अभी भी मानसकिता बनी हुई है।सिर्फ संवैधानिक व्यवस्था देने से पंचायतीराज सुदृढ नही होगा इसके लिए लोकतंत्र की बुनियादी तत्वों के सक्रिय होने की जरूरत है।
लोकतंत्र का प्राण तो जनता है जब वह अपनी जिम्मेदारी को नैतिकता और ईमानदारी के सात निर्वहन करेगी और छोटे छोटे लालच की बजाय इस बात पर जोर देगी कि लोकतंत्र सर्वोपरि है । सामुदायिक हित से बढ़कर हमारा व्यक्तिगत हित नही है। देश को प्रगति पथ पर ले जाने की हसरत होगी तभी लोकतंत्र परिपक्व होगा।