सोढ में पैर डालकर तोड़ रहे हो,घर फूक तमाशा देख रहे हो | news india 80
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पर्व के नाम पर बिगड़ता पर्यावरण का स्वरूप
मनोज यादव संवाददाता
सोढ में पैर डालकर तोड़ रहे हो
घर फूक तमाशा देख रहे हो
गुरुवार को राजधानी क्षेत्र दिल्ली पूरी तरीके से प्रदूषण के धुंध में तब्दील हो गया। कोर्ट में इसके खिलाफ टिप्पणी किया, सरकार सजग हुई लेकिन उन दोनों को छोड़िए उन्होंने अपनी औपचारिकता निभा दिया लेकिन क्या हमने अपनी जिम्मेदारी निभाई।
बढ़ती जनसंख्या बढ़ते वाहनों के भार से प्रदूषण की मार से पहले ही राजधानी की हवा जहरीली हो गई है लेकिन खुशियों के इस त्योहार में हम खुद के घर को जलाकर तमाशा देखने के आदी बन गए है। यह पर्यावरण हमारा घर ही तो है, प्रकृति ने हमे बड़ी शालीनता से उसे सौपा था।
लेकिन हमने अपनी असभ्यता और बेतरतीब जीवन शैली से उसे उजाड़ दिया है। शुद्ध आक्सीजन नही मिल रहा है तो यह भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 का सीधा उल्लंघन है लेकिन कोर्ट की टिप्पणियां सिर्फ सरकार पर नही होती है वह हमारी जिम्मेदारियों को झकझोरने का काम करती है अफसोस इंसान रस्मअदायगी की रवायत में खुद और आने वाली पीढ़ियों की की बिल्कुल भी चिंता नही कर पा रहा है।
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दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती है गोवर्धन पूजा मानव जीवन के साथ प्रकृति के संतुलन का भी त्यौहार कहा जाता है पेड़ पौधे पर्वत प्रकृति के साथ मानव का अटूट संबंध है लेकिन राजधानी की बिगड़ी हुई आबोहवा यह बता रही है कि मानव जाति खुद की जिम्मेदारी और प्रकृति को भूल चुका है जल्द ही अगर सभी लोग इस के प्रति सचेत नहीं हुए थे हिंदुस्तान में सारी हवा धुंध में तब्दील हो जाएगी।