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अपनी अपनी ढपली, अपना अपना राग
मनोज यादव संवाददाता
हर जगह समस्याए है, अवव्यस्था है, लोगो मे जीजिविषा के लिए जद्दोजहद करने की होड़ है, सरकार के मुलाजिम अपनी बात रख रहे हैं पीड़ित जनता अपनी बात रख रही है, इस बात को लेकर भी संघर्ष है जिंदगी में संघर्ष है अस्पतालों की देहरी तक पहुंचते-पहुंचते साँसों की डोरी टूट जा रही है कभी जो अस्पताल तक पहुंच भी गए तो ऑक्सीजन कमी है तो बेड मयस्सर नहीं हो पा रहा है हम अव्यवस्था की ऐसी दीवार कब तोड़ पाएंगे महामारी ने बहुत कुछ दिखा दिया बाकी सरकार के पास कितने इंतजाम है।
चिताओं पर लाशों के जलने का सिलसिला बदस्तूर जारी है आंखें नम है, हृदय में गुस्सा है महामारी से बचने की तड़प है 2 साल पहले के हालात को फिर से पानी की बेचैनी है लेकिन हालात सुधरे तो कैसे सबके जेहन में यह सवाल लेकिन बड़ा सवाल है कि आखिर भारत के लोकतंत्र में संवैधानिक रूप से जीवन जीने की आजादी और इसके संवैधानिक अधिकारों का कितना पालन हो रहा है।
न्यायपालिका गला फाड़ के चिल्ला रही है सरकार अपना दावा ठोक रही है जनता का अपना दर्द है।