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प्रकृति से दूर होकर महामारी से निपटना मुश्किल
मनोज यादव सम्वाददाता
पूरी दुनिया में ऑक्सीजन की कमी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है हिंदुस्तान में प्रकृति पूजा की परंपरा हमेशा से रही है लेकिन विज्ञान की आपाधापी में इसे न सिर्फ नष्ट किया बल्कि इस पर सवाल भी खड़ा किया। मंगल ग्रह पर पहुंच जाने की ललक और जद्दोजहद में प्रकृति के साथ इंसानों ने जो बर्ताव किया है शायद उसी का प्रतिफल आज हमें दिखाई दे रहा है कोरोना महामारी निश्चित रूप से हम सबके लिए एक बड़ी विपदा जैसी है
लेकिन उसका सबसे बड़ा इलाज ऑक्सीजन में ही दिखाई दे रहा है आज इस बात की चर्चा जोरों पर है कि ऑक्सीजन अगर उपलब्ध हो तो लाखों लोगों की जान बच सकती है एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन काल में जितना ऑक्सीजन ग्रहण करता है पांच वृक्ष मिलकर उतना ऑक्सीजन छोड़ते हैं अब अगर हम इस सापेक्ष में देखें तो कितने लोगों ने अपने जीवन में कितने वृक्ष लगाएं और उसका संरक्षण किया है शायद इस अनुपात में हम काफी पीछे चले जा सकते हैं लेकिन शायद यह प्रकृति की पुकार है लोगों के लिए एक आगाह है
चेतावनी और हिदायत है कि मनुष्य अगर अभी भी नहीं सुधरा तो आने वाला समय और भी प्रलय कारी होगा और भी भीषण तबाही से हो सकती है ऐसे हालात में अब फिर से मनुष्य को इस बारे में विचार करना चाहिए कि हम प्रकृति कितने नजदीक है और हमारा नाता उससे कितना गहरा है।