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लड़ेंगे जीतेंगे साथ ही बहुत कुछ सीखेंगे
मनोज यादव संवाददाता
आज जब देश और दुनिया में संकट के बादल छाए है,पूरी दुनियां जिजीविषा के लिए जद्दोजहद कर रही है। लोग अंधेरो में उम्मीद की रोशनी ढूंढ रहे है। सरकारे बेबश दिखाई दे रही है तब इस बात पर विमर्श करना समीचीन हो जाता है कि आधुनिकता का चोला ओढ़कर हम विज्ञान के नक्शेकदम पर कितने कदम चल पाये है। अस्पतालों में आक्सीजन कम हुआ तो लोगो को पेड़ो की याद आई।
चाँद पर पहुंचने की जिद में पड़ा आदमी पेड़ो की जड़ो में जीवन खोजने लगा यही आदमी की सही लाचारी और बेबसी है। महात्मा गांधी कि यह बात हमेशा याद आएगी कि मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है लेकिन उसकी लालच को पूरा करने के लिए कोई विकल्प नहीं है । महामारियों का अपना एक इतिहास रहा है लेकिन जब जब मानवता को रौदते हुए महामारी ने अपना वीभत्स रूप दिखाया है साथ ही इंसान को आईना दिखाया है तब तक इंसान कुछ ना कुछ सीख पाया है।
हमे विश्वास है हम लड़ेंगे जीतेंगे लेकिन बहुत कुछ सीखेंगे। दुनिया के गतिमान समय मे आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ संदेश भी गढ़ेंगे लेकिन इंसान तभी तक उस पर अमल करेगा जब तक किसी अगली महामारी से उसका सामना नही होगा फिर से वह बेबस और लाचार जब तक नही होगा उसे सभी बातें कागजी लगेगी।
मनोज यादव संवाददाता