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लोकसभा में सांसद संगम लाल गुप्ता ने उठाया पट्टी के रूरे का मामला
कहा पं नेहरू की शानदार विरासत को भी न सम्भाल सके कांग्रेसी
रूरे से राजनीति की शुरुआत करने वाले प्रथम पीयम का क्षेत्र रहा उपेक्षित
बाबा रामचन्द्र की अगुवाई वाली अवध किसान आंदोलन का केंद्र बिंदु रहे रूरे को शहीदों की याद में विकसित करने रखी मांग
उल्लेखनीय है कि हरी, बेगारी के खिलाफ पूरे देश में रूरे का किसान आंदोलन रहा अगुवाई का केंद्र
1920 में पहली बार पण्डित नेहरू ने प्रतापगढ़ के पट्टी पहुंचकर वहां से 6 किमी पैदल चलकर रूरे में की थी।
किसान सभा नेहरू ने अपनी लिखी डिस्कवरी आफ इंडिया पुस्तक में किया है रूरे का जिक्र
आजादी के बाद से उपेक्षित हो गया रूरे,
महाराष्ट्र से किसान आंदोलन को पहुंचे बाबा रामचन्द्र ने रूरे को बनाया था अपना केंद्र बिंदु
ठाकुर झिंगुरी सिंह आदि ने उनकी अगुवाई में खड़ा किया था बड़ा आंदोलन ,
1952 में पहली लोकसभा का टिकट मिलने पर झिंगुरी सिंह ने असमर्थतता जताकर पण्डित मुनीश्वर दत्त को टिकट की शिफारस कर दिया था त्याग और बलिदान का परिचय।
अंग्रेजों द्वारा बाहरी बताकर भगाने से बचाने को स्थानीय जग्गी देवी से कराया था बाबा रामचन्द्र का विवाह
1997तक जीवित रहीं थी जग्गी देवी।
तत्कालीन डीयम रमा रमण के बाद से उपेक्षित ही रहा रूरे का शहीद स्थल
लावारिस हालात में पड़े रूरे की पीड़ा को लोकसभा के शून्यकाल में उठाया सांसद संगम लाल ने
कहा रूरे का हो विकास और जंगे आजादी के दीवानों से सीख ले सके नई पीढ़ी ।
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मनोज यादव संवाददाता