रजवाड़ो की विरासत से बड़ा था लौह पुरुष का व्यक्तित्व
सरदार का अर्थ ही होता है कुशल नेतृत्वकर्ता, प्रखर वक्ता और और समस्याओं को सुलझाने वाला शख्स, शायद पटेल जी न होते तो भारत की यह खूबसूरत नक्शा बहुत डरावना और बेतरतीब होता। अंग्रेजो ने लापरवाही से राजाओं को एक टूक कहा दिया कि आप भी आजाद हो चाहे पाकिस्तान में मिलो, चाहे खुद का राज्य चलाओ और चाहे तो हिंदुस्तान में मिल जाओ।
जो लोग कहते है कि अंग्रेजो ने हिंदुस्तान को आधुनिक बनाया और भारत का हित किया उनके लिए अंग्रेजो का उक्त वक्तव्य आईना दिखाने जैसा है, परिस्थितियां विपरीत थी, मन मे तमाम आशंकाएं थी 600 छोटी, छोटी देशी रियासते सबका अपना अपना मत किसी को पाकिस्तान की चाहत तो कोई स्वतंत्रता का राग अलाप कर अपनी आवाज बुलंद कर रहा था ऐसे में नेहरू और गांधी को बारदोली का सरदार याद आया।
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सरदार पटेल के कुशल नेतृत्व और अदम्य साहस को परख करके ही कराची के कांग्रेस के सम्मेलन में गांधी जी ने कहा था कि नेहरू सिर्फ विचारक है लेकिन उन विचारों को अमली जामा पहनाने का काम सरदार पटेल करते है। ऐसे में 600 देशी रियासतों के विलय का दुष्कर कार्य पटेल जी के सामने था।
अपने निजी जीवन मे वह लौह पुरुष थे सार्वजनिक जीवन मे उससे अधिक दृढ़ता उनमें भरी थी वह किसी भी हालात को समझने की पैनी दृष्टि रखते थे। हैदराबाद को सेना भेजकर, जूनागढ़ में जनमत संग्रह कराकर उसे मिलाया। जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर नेहरू ने उनसे कमान अपने हांथ में लें लिया था।
15 दिसम्बर 1950 को देश का वीर सपूत भारत माता के आंचल में लिपट कर हमेशा के लिए सो गया लेकिन उनकी दृढ़ता, उनका अदम्य साहस, उनका सम्यक दृष्टिकोण, किसी मुद्दे को सुलझाने की पैनी दृष्टि, उनका राष्ट्रप्रेम और एकीकरण की अदभुत शिल्प हमे हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।
मनोज यादव संवाददाता