गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा
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गांव में गुजरा जमाना भी ग़ज़ल जैसा था !!—
सावन मास की रिमझिम फुहार के बीच खुशनूमा वातावरण में बहती पुरवा हवा, किलोल करते पक्षियों का झुन्ड, लबालब भरे पानी के कून्ड ,और आसमान से आग बरसती आग से राहत पाये जीव जन्तु शाम होते ही जगमग रौशनी बिखेरते जुगनूओ का समूह
आसमानी आफत का संकेत देते दादुरो का विहंगम गान वाह साहब क्या नजारा होता है गांव की मिट्टी से निकलती भीनी भीनी सोधी सोधी सुगन्ध के बीच खेतों में रोपाई करती बालाओं के समूह से निकलती स्वर लहरियां आसमान में कड़कती चंचल चपला के बीच रिमझिम फुहार से जो मनोरम दृश्य उभरकर आता है |
गजब साहब लगता है कश्मीर की वादियों का स्वरूप यही उतर आया है!सावन मास का पावन महीना शुरु हो चुका है!भगवान भोलेनाथ अविनासी घट घट ब्यापी के पूजन अर्चन में भक्त कांवरियों का समूह नंगे पांव सारगर्भित मर्मस्पर्शी मन्त्र बोलबम- ऊं नम: शिवाय-बोलते झूमते आनन्दित होते शिवालयों के तरफ जाते को देखना भी दिल को शकून देता है!
आजकल गांवों का नजारा बदल गया है! खेल खलिहान में किसानी का काम तेज हो गया!धान की रोपाई चरम पर है।लेकिन इस बदलते परिवेश में अब वो पुरानी स्मृतियां मन को कचोटती है!अब न बाग बगीचे रह गये! न सावन की कजरी न नीम के पेड़ों पर झुले रह गये!अजीब उदासी है !भारतीय संस्कृति का पुरातन वजूद गांवों से खत्म हो चला है!घनी आम की बाग, सुगन्ध बिखेरता खूबसूरत मंदिर और पलास,
बसन्त के आगमन के समय भीनी भीनी सुगन्ध देता महुआ का घना पेड़,! दरवाजे के बाहर दर्द के दवा के रुप मे विख्यात स्थाईत्व पाया रेड!,हर सुबह मीठी मीठी आवाज से मन मोह लेनी वाली कूकती कोयल,
सावन माह के गंवई त्योहार, गुल्ली डन्डा ,बित्ती,कबड्डी का खेल,नाग पंचमी के दिन पहलवानों का हूजूम जगह जगह अखाड़ों में होते दंगल,में उमड़ती भीड़ का रेलम पेल,हरहराती नदी के बीच नाव पर झूझुवा का खतरनाक खेल, पुरातन रीत रिवाज, भोरहरी में भजन, फेरी लगाते सन्तों की भैरवी,गांव गांव सावन मास से श्री कृष्ण जन्म अष्टमी तक हर शाम को कीर्तन भजन सब परिवर्तन की भेंट चढ़ गया! दो से तीन दशक के भीतर ही पूरा नज़ारा बदल गया! हर तरफ मंजर उदास है!
अब न कहीं आपसी ताल मेल दिखता न लगता मेला,अब कही नही मदारी दिखाता बन्दर का खेला! खत्म हो गया बाईस्कोप का स्कोप जिसको देखते ही बच्चे दौड़ पड़ते थे। राह चलते दहशत पैदा करने वाले सैकड़ों सैकड़ों साल पुराने राह में पड़ने वाले पीपल के पेड़ जिसकी दन्तकथाओं को सुनकर सिहरन पैदा हो जाता, दिन के दोपहर शाम को सूरज ढलने के बाद कोई उस तरफ नहीं जाता,
रास्ता बन्द हो जाता अब वह कही नहीं दिखते हैं उस पर रहने वाले,भूत पिसाच का प्रकोप भी विलोपित हो गया!दरवाजे पर घुंघरु बजाते बैलों की जोड़ी,सबसे मजबूत गांवों में आवागमन का संसाधन बैलगाड़ी, शाम की बैठकी में भाईचारगी की रहनुमाई करने वाला चिलम हुक्का,घनी मूंछों से शुसोभित बलशाली शरीर के साथ रौबदार आवाज से दहशत पैदा कर देने वाले वो लोग कल की बात हो गये!
भारतीय संस्कृति की पहचान धोती कुर्ता अब पिछड़ेपन की निशानी होकर रह गया! जिस तरह से सब कुछ बदल रहा है वह कुछ दिन में ही भारतीय परम्परा को पूरी तरह विलुप्त कर देगा।आने वाली नस्लें आश्चर्य करेगी की हमारे पुर्वज लालटेन, ढेबरी, की रौशनी में रहते थे! बिना चप्पल नंगे पांव चलते थे! महुआ का लाटा, सा’वा ,कोदो मडुआ मक्का, बाजरे की रोटी खाते थे!
बांस की खाट पर सोते थे! गांवों में बांस का झुरमुट, घना बाग बगीचा हुआ करता! अन्तर्देशीय, पोस्ट कार्ड पर समाचार मिला करता था, कागा के मुडेर पर सगुन उचारने पर मेहमान आने की तैयारी होती थी,लोग तालाब पोखरी में नहाते थे!,घास फूस छप्पर खपरैल की मकान में रहते थे!
बैलों से खेती होती थी! दुल्हन को डोली मे कहार लेकर जाते थे! गांव में बिद्यालय नहीं थे!अस्पताल नहीं थे! सड़क नहीं थी! बिजली नहीं थी!लोग पैदल यात्रा करते थे!
कुआं का पानी पीते थे।मगर सदाचारी और धार्मिक बहुत होते थे! यह सब कुछ आने वाली पीढ़ी के लिए आश्चर्य का बिषय होगा। बदलाव ने तो लोगों का रहन सहन हाव भाव सब कुछ बदल दिया है।आधुनिकता का असर गांव हो या शहर हर जगह बराबर हुआ है!हर जगह पुरातन परम्परा का खात्मा लगभग हो गया है।
इस सदी के बाद गुजरी सदी इतिहास बन कर रह जायेगी। महज एक दशक बाद उपरोक्त सारी बातें मिथक लगने लगेगी। सबकुछ खत्म होता जा रहा अब न संयुक्त परिवार रहा न घर में कोई मुखिया रहा।अलग अलग राग अलग अलग ढपली!हर कोई एकाकी जीवन का अनुगामी बन गया बस दुर्भाग्य के दो राहे पर खड़ा ख्वाबों की चाहत में आहत जन्म दाता ही तन्हा रहा,!उसके मन में बस एक ही सवाल है! जाएं तो जाएं कहां?
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उत्तराखंड में भारी बारिश जारी है जिससे नदी नाले उफान पर बह रहे हैं इसी कड़ी में एचआरटीसी यानी हिमाचल पथ परिवहन निगम की बस शिमला बाईपास रोड पर रामगढ़ के
पास एक नाले के तेज बहाव में फंस गई जिससे यात्रियों में चीख पुकार मच गई नाले में बस फंसते ही सवारियों ने अपनी जान बचाने के लिए छलांग लगानी शुरू कर दी गमीनत रही बस पलटने से बच गई जिससे बड़ा हादसा होने से टल गया पुलिस और लोगों की मदद से यात्रियों को
सुरक्षित बस से बाहर निकाला गया पटेल नगर चौकी प्रभारी जयवीर सिंह ने बताया कि सभी यात्री सकुशल हैं बस को भी नाले से बाहर निकाल दिया गया है यह हिमाचल रोडवेज की बस यह बस पांवटा साहिब से होते हुए देहरादून की ओर जा रही थी।