वो महिला जिसने 36 लोगो को अकेले मार गिराया
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सन् 1857 गदर की महानायिका अमर शहीद वीरांगना उदादेवी पासी जयंती पर समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं एवम् माता के चरणों में कोटि कोटि नमन।
उदा देवी रण में उतरी लेकर बंदूक दूनाली ।
अंग्रेजों पर टूट पड़ीं जैसे रण चंडी मा काली।।
वीरांगना उदादेवी पासी का जन्म लखनऊ के उज्जरियावां गांव में हुआ था । इनका विवाह वीर मक्का पासी के साथ हुआ था। वीर मक्का पासी का जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ था देश प्रेम के लिए जज्बा और जुनून था जिसकी वजह से अवध के नवाब की सेना में शामिल हो गए वीरांगना उदादेवी पासी को ससुराल में जगरानी कहते थे वीर मक्का पासी के सेना में होने के कारण काफी प्रभावित थीं और प्रभाव का ऐसा असर हुआ की बेगम हजरत महल द्वारा बनाई गई महिला दस्ते में शामिल होकर अपने युद्ध कौशल के बल पर शीघ्र ही महिला दस्ते की कमांडर इन चीफ बन गईं 1857 की क्रांति की वजह से पूरे देश में ब्रिटिश हुकूमत का विरोध हो रहा था जिससे अवध भी अछूता नहीं था ।
अवध विद्रोह को दबाने के लिए हेनरी लारेंस के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने अवध पर आक्रमण कर दिया । विद्रोही सेना और अंग्रेजी सेना के बीच लखनऊ के निकट चिनहट इस्माइलगंज में दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ ।विद्रोही सेना का नेतृत्व मौलवी अहमदुल्ला शाह और वीर मक्का पासी कर रहे थे इस युद्ध में विद्रोही सेना की जीत हुई और हेनरी लारेंस को मैदान छोड़ कर भागना पड़ा।
इस जीत से स्वतंत्रता सेनानियों का हौसला बुलंद हुआ लेकिन इस युद्ध में सैकड़ों सैनिकों के साथ वीर मक्का पासी शहीद हो गए शहादत की खबर सुनकर वीरांगना उदादेवी पासी विचलित नहीं हुई बल्कि और मजबूती के साथ अंग्रेजों से लड़ने का दृढ़ निश्चय किया और 16 नवंबर 1857 को सिकंदर बाग में एक पीपल के पेड़ पर चढ़कर एक एक करके 36 अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया अंग्रेजो की गोली बारी में गोली लगने से पेड़ के नीचे गिर गई और पगड़ी खुल गई अंग्रेज आफिसर यह देखकर दंग रह गए की यह तो वीरांगना है |
उसी समय अंग्रेज आफिसर कोलिन कैंपवेल ने हैट उतारकर सलामी दी और कहा कि अगर मुझे पता होता की ये वीरांगना है तो गोली चलाने का आदेश न देता वीरांगना उदादेवी पासी के शौर्य और शहादत पर भारतीय इतिहासकारों ने बहुत कम जबकि लंदन टाइम्स के तत्कालीन संवाददात विलियम हावर्ड रसेल ने जो विवरण लंदन भेजा उसमे प्रमुखता से उल्लेख किया की पुरुष वेश में एक स्त्री द्वारा पीपल के पेड़ से फायरिंग कर अंग्रेजी सेना का भारी नुकसान किया कई दिनों तक लंदन के अखबारों में छाई रहीं ।
भारत में जातिवादी मानसिकता से ग्रसित इतिहासकारों और जातिगत राजनीतिक खेल की वजह से इतिहास के पन्नो पर वीरांगना उदादेवी पासी को वह स्थान वह सम्मान नहीं मिला जिसकी हकदार हैं उनकी वीरता और शौर्य को पाठ्य पुस्तकों में समाहित करने का आश्वासन दिया गया संसद में भी चर्चा हुई लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं सबसे बड़ा घोटाला तो इतिहास घोटाला ही है ।
शहादत पर दिवस राजपत्रित अवकाश घोषित किया गया था उसे भी प्रतिबंधित अवकाश कर दिया गया है । पुनः 16 नवंबर शहादत दिवस पर राजपत्रित अवकाश घोषित किया जाय।
माता वीरांगना उदादेवी पासी अमर रहे, अमर रहें अमर रहें।